सच कहा जाये तो अगर कक्षा 10 तक के शिक्षण को चाहे वह गुणवत्ता के लिहाज से परखें या मात्रात्मक लिहाज से, दोनों मोर्चो पर हम बुरी तरह विफल रहे हैं और हम अशिक्षा, अज्ञान, अभाव, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कर्ज की महा शक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं...यह हमारे देश की कड़वी सच्चाई है कि करीब 60 फीसदी पुरुष और महिलाएँ पढ़ लिख नहीं सकते....साथ ही 10 करोड़ बच्चे जिन्हें स्कूल में होना चाहिए था वे वहां नहीं सकते...हमारे 71 हजार स्कूलों के अपने भवन नहीं हैं, 60 फीसदी स्कूलों के भवन एक बरसात भी नहीं झेल पाते, 58 फीसदी स्कूलों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है और 85 फीसदी स्कूलों में शौचालय सुविधा नहीं है....लगभग 60 फीसदी स्कूल तो महज एक या दो शिक्षक के बल पर चल रहे हैं......।
गुणवत्ता के लिहाज से देखें तो कक्षा 10 तक बच्चे ठीक से अंग्रेजी, बोल पढ़ या लिख नहीं सकते, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए वैश्विक भाषा जैसी है....ग्रामीण इलाकों की छोड़ भी दें तो शहरी क्षेत्र के कक्षा 10 तक के स्कूली बच्चे जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते लिखते हैं वे भी इस भाषा से अपना बेहतर ताल-मेल नहीं बिठा पाते....भारत में कई विभिन्न भाषाओं, बोलियों के कारण समस्या और जटिल हो जाती है, क्योंकि इनके लिए न कोई उभयनिष्ठ लिपि है न ही इनमे कोई अंतरसंबंध...भाषाई आधार पर राज्यों के बंटवारे ने राजनीतिक आंच ही तेज की है जिस पर हमारे नेता रोटी सेंक सकते हैं....इसमें भाषा को अपनाने की बाध्यता भावनाओं से जा जुड़ी है और इसे लेकर हम उव्देलित हो जाते हैं....विज्ञान और टेक्नालाजी जैसे विषयों को आत्मसात करने में यह आड़े आती है क्योंकि आज ज्यादा से ज्यादा विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रसार मंच अंग्रेजी है....विज्ञान को समझने के लिए यह भाषा एक तरह से जरुरी हो जाती है और इस भाषा में बेहतर गति न होने के कारण विद्यार्थियों के लिए यह भार बन जाती है...विशेषकर हमारे स्कूली बच्चे मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, हिन्दी और अंग्रेजी सीखते हैं...इसमें केवल मराठी और हिन्दी की लिपि देवनागरी है....दूसरी हर भाषा के लिए दूसरी लिपि है...कोई भी व्यक्ति अपने राज्य से बाहर जाते ही संचार का अभाव महसूस करने लगता है...खासकर वहां जहां हिन्दी को लेकर पूर्वग्रह ज्यादा हैं....कई बार व्यावहारिक रुप से यह आभास होने लगता हैं कि राज्यों की सीमाएं संचार के लिहाज से अंग्रेजी से ज्यादा आसानी से टूटती हैं बनिस्पत हिन्दी के....।
विज्ञान संचार में स्थिति तब और दुरुह हो जाती है जब हर अंग्रेजी शब्द का तर्जुमा भावनात्मक लिहाज से किया जाने लगता है- जैसे रेलवे सिगनल का मराठी अनुबाद-अग्निरथ आगमन निर्गमन सूचक पत्रिका...इसीलिए सिगनल हम ठीक से पढ़ भी नहीं पाते कि ट्रेन निकल जाती....।
अगर हम अंग्रेजी का प्रसार अपनी भाषा की कीमत पर नहीं करना चाहते तो संचार समस्या का एक हल यह निकल सकता है कि विशेषकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी को हम रोमन लिपि में लिखें- जैसे अ आ इ ई के लिए a,a,i,i, और क,ख,ग,घ के लिए kh,kha,ga,gha- यह लिपिकरण और उच्चारण के लिहाज से भी ठीक है....।
लिपिकरण की यह योजना नयी नहीं है....यह अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर आधारित है...भारतीय लिपि के रोमनीकरण की ( नेशनल लाइब्रेरी, कोलकाता द्रारा विकसित) यह व्यवस्था सदियों से रही है जिसने अन्तर्राष्ट्रीय विव्दानों को बिना किसी स्थानीय लिपि सीखे भारतीय भाषा की पढ़ने समझने मे मदद की है...अन्तर्राष्ट्रीय भारतीयविदों की भारतीय कृतियों तक पहुंच इस विधि ने आसान कर दी है और इसे भारतीय नागरिकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए...इसके जरिये किसी भी भारतीय नाम और स्थान को ठीक से पढ़ने में उलझन नहीं आयेगी....भाषाई शब्दों को रोमन लिपि में पढ़ने में भी आसानी होगी....इससे लेबल, चिह्न, नेमप्लेट,तकनीकी आलेख पढ़ने में भी आसानी होगी....कई ऐसे कुशल कारीगर हैं पर अंग्रेजी में लिखें निर्देश वे नहीं पढ़ पाते....तकनीकी शब्दों से वाकिफ भी हैं पर अंग्रेजी में लिखें निर्देश वे नहीं पढ़ पाते....ऐसे लोगों के लिए रोमन अक्षर और भारतीय, अरबी अंक काफी सहायक हो सकते हैं....।
विशेषकर अरबी अंक बड़ी आसानी से भाषाई अंकों का स्थान ले सकते है...इससे विज्ञान संचार में और टेक्नालाजी के उपयोग में भी सहूलियत होगी...अगर पंचांग वगैरह को छोड़ दें तो विभिन्न भाषाओं के अंक हमें और कहां मिलते हैं...जबकि रोमन अंक कैलकुलेटर, कंप्यूटर, टेलिफोन डायल, रेलवे टिकट से लेकर लगभग सभी चीजों पर अंकित मिलते हैं..यह उनके लिए भी काफी फायदेमंद रहेगा जो कक्षा पांच के बाद स्कूल नहीं जाते.....।
भले ही न्यूटन के गति के नियम या आइंस्टीन के मात्रा और ऊर्जा के अंतरसंबंध जैसी मूलभूत वैज्ञानिक अवधारणाएं समझने में दिक्कत हो पर देखा जाये तो भारत के ग्रामीण को इससे लेना देना बी बहुत कम है....उन्हें विज्ञान की अवधारणाएं व्यावहारिक काम कर बतायी जा सकती हैं...मशीनों का उपकरणों के नाम हम वैसे ही रहने दें जैसे कंप्यूटर, पंप आदि तो रोमन अक्षरों और भारतीय-अरबी अंक पढने की योग्यत से शिक्षा की शुरुआत की जा सकती है...अगर हम भाषा पूर्णतः नहीं हटायें रोमन लिपि का उपयोग करें तो भी उच्चारण में अंतर नहीं आयेगा....।
आमजन के लिए विज्ञान संचार की जरुरत आज शिद्दत से महसूस की जा रही है, जिससे उनमें वैज्ञानिक नजरिया विकसित हो....उन्हें अंधविश्वासों से निजात मिले...हमे रोमन लिपि का उपयोग करने में संकोच नहीं करना चाहिए छोटी उम्र से रोमन लिपि और भारतीय- अरबी अंकों की स्वीकृति ज्यादा सही तरीके से महें विज्ञान से जोड़ने का काम करेंगी.....।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें