दिल वालों का शहर दिल्ली यूं तो दिल्ली में कई धार्मिक जगह है जो देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है...उसी में से एक है मां झंडेवाला का मंदिर...अष्टकोणी आकार में मौजूद इस मंदिर में मां झंडेवाला की मूरत मन मोह लेने वाली है...साथ ही गुफा में होते है मां के मूल प्रतिमा के दर्शन...चलिये हमारे लेख के जरिये आप भी कमा लीजिये पुण्य...।
मां झेडेवाली तेरे बिन रह नहीं सकता मां मुझे तेरी आदत पड़ गई है...।
मां झंडेवाली मैं जुदाई सह नहीं सकता मुझे तेरी आदत पड़ गई है...।।
दिल्ली के झंडेवाला देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है...यह एक ऐसा पावन स्थल है जहाँ सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं...जी हाँ...यहां दूर-दूर से भक्त, माँ के पावन दर्शनों के लिए आते हैं...यहाँ भक्त माँ भगवती से अपनी मानसिक शांति, स्वास्थ्य, सुख व अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद माँगते हैं...यहाँ आने पर भक्तों का हिलता विश्वास अडिग हो जाता है...ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान की संगम स्थली देश की राजधानी दिल्ली...दिल वालों की दिल्ली का इतिहास काफी पुराना है...प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक और गुलामी से लेकर आज तक दिल्ली इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रही है...एक तरफ ऐतिहासिक इमारतों का जमघट है तो दूसरी ओर अक्षरधाम, हनुमान मंदिर, झत्तरपुर, बिड़ला मंदिर, स्कॉनटेम्पल जैसे पवित्र स्थल आस्था और विश्वास का प्रतीक बनकर भक्तों को अपने ओर आकर्षित करते है...उन्ही पावन स्थलों में एक नाम है झंडेवालान मंदिर का...दिल्ली के पहाड़गंज और झंडेवालान क्षेत्र के बीच स्थित है देवी का वो परम धाम जहां हर रोज हजारों लाखों श्रध्दालू श्रध्दा से मां के सामने अपना शीष नवाते है...और जिनके दरबार में पूरी होती है हर मुराद...झंडेवाला देवी का यह मंदिर अष्टकोढ़ी आकार में बना है...जिसका शीर्ष कमल फलकों के आकार का है...मुख्य भवन में मां झंडेवाला की प्रतिमा प्रतिष्ठित है...जो अत्यंत ही सुंदर है...और जिसकी भव्यता का वर्णन शब्दो से नहीं किया जा सकता...भवन की दक्षिणी दिशा में शीतला माता संतोषी माता वैष्णों माता गणेशजी लक्ष्मी जी और हनुमान जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है...मान्यता है मां झंडेवालान की मुख्य प्रतिमा जो खुदाई में प्राप्त हुई थी वो नीचे गुफा में मौजूद है...और ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदाई में मिला था...चूंकि माता की मूर्ति खुदाई के समय खंडित हो गई थी इस लिए उसे उसी तरह छोड़ दिया गया...ताकि प्रतिमा को और कोई क्षति ना हो...मूर्ति के नीचे का कुच भाग आज भी उसी अवस्था में है...और वर्तमान समय में मूल प्रतिमा के ऊपर ही स्थापित मां झंडेवालान के भव्य रुप का दर्शन पूजन किया जा रहा है...ठीक उसी तरह से शिवलिंग की भी क्षति ना हो इस कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया है...मां की यही वह प्रतिमा है जिसके मिलने के बाद इस मंदिर का निर्माण हुआ...और आज भी यह प्रतिमा यही स्थापित है...और इसके खंडित हाथ को चांदी के हाथ बना दिया गया...मां का मंदिर झंडेवालान के नाम से क्यूं प्रसिध्द है...और मां के इस भव्य मंदिर के बनने के पीछे की पूरी कहानी...झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वीं सदी के आस-पास से मिलता है...आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे...अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था...लेकिन किस तरह हुआ मां झंडेवालान के मंदिर का निर्माण...दिल्ली के बीचों-बीच में स्थित झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है...अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य सरकार ने भी दिल्ली के मशहूर दर्शनीय स्थलों में इसे शामिल किया है...साल भर बिना किसी भेदभाव के लाखों की संख्या में भक़्त लोग देश विदेश से दर्शन करने यहां आते हैं...नवरात्रों में यहां उमडती भक़्तजनों की भीड तो अपने आप में ही दर्शनीय बन जाती है...मंदिर में आने वाला प्रत्येक भक़्त यहां से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति लेकर ही जाता है...हर एक भक़्त को आशीर्वाद के रूप में देवी का प्रसाद मिलता है...झंडेवाला मंदिर का धार्मिक ही नही एतिहासिक महत्व भी है..झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वीं सदी के आस-पास से मिलता है...आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे...अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था... इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे...ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक मशहूर कपडा व्यपारी श्री बद्री दास भी थे...श्री बद्री दास धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के भक़्त थे...वे हर दिन इस पहाडी पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे...एक बार ध्यान में लीन श्री बद्री दास को ऐसी अनुभूति हुई कि वही निकट ही एक चश्में के पास स्थित एक गुफा में कोई प्राचीन मंदिर दबा हुआ है... दोबारा से एक दिन सपने में इसी क्षेत्र में उन्हें एक मंदिर दिखाई पडा और उन्हें लगा की कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस मंदिर को खोज निकालने के लिए प्रेरित कर रही है... इस अनोखी अनुभूति के बाद श्री बद्री दास ने उस स्थान को खोजने में ध्यान लगा दिया और एक दिन स्वप्न में दिखाई दिए झरने के पास खुदाई करते समय गहरी गुफा में एक मूर्ति दिखाई दी...यह एक देवी की मूर्ति थी पर खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया और ठीक उसके ऊपर देवी की एक नयी मूार्ति स्थापित कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवायी...इस अवसर पर मंदिर के ऊपर एक बहुत बडा ध्वज लगाया गया जो पहाडी पर स्थित होने के कारण दूर-दूर तक दिखाई देता था जिसके कारण कालान्तर में यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया...यह प्राचीन गुफा वाली माता और शिवलिंग भी भक़्तों की श्रद्धा का केंद्र है...इसी गुफा में जगाई गई ज्योतियाँ भी लगभग आठ दशकों से अखंड रूप में जल रही है...समय बीतने के साथ ही मंदिर का स्वरूप बदलने लगा और धीरे - धीरे हरी भरी अरावली की पहाडियों पर स्थान-स्थान पर भवन इमारतें बनने लगी...भारत विभाजन के समय शरणार्थियों के रूप में राजधानी दिल्ली में आने वाले लोग जहां तहां बस गए जिससे इस स्थान का रूप भी बदल गया...आजकल यह स्थान राजधानी के केंद्र में स्थित अनेक मशहूर और बहुत अधिक व्यस्त व्यापारिक केंद्रो से घिरा हुआ है जिसमें पहाडगंज, करोल बाग, सदर बाजार, झंडेवालान जैसे बाजार आते हैं...।
नवरात्र के मौके पर दिल्ली के कालका जी, कात्यायनी मंदिर, छत्तरपुर और दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान माता मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती हैं...इसका कारण यह है कि...इन मंदिरों के प्रति लोगों में बड़ी आस्था है...वही अगर हम बात झंडेवालान मंदिर की करे तो...संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान और सुनाता है कहानी देवी के चमत्कार की...भक्ति में डूबे भक्तों को इंतजार है मां का...मिल जाए मां की एक झलक, मिल जाए उनका आशीर्वाद और हो जाए उनकी कृपा...फिर कोई आस बाकी नहीं रहती...फिर कोई भी मनो-कामना अधूरी नहीं रहती...बंद आंखों से भक्त मां को करते है याद और पहुंचाते है मां तक अपनी फरियाद...लंबे इंतजार के बाद जब भक्तों को दर्शन होते है मां झंडेवालान की मनमोह लेने वाली प्रतिमा की तब भक्तों की आंखें एकटक निहारने लगती है मां को और उनका मन मां की भक्ति में लीन हो जाता है...संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान जो सुनाता है कहानी मां के चमत्कार की...आज जहां मां झंडेवालान का भव्य धाम स्थापित है वहां कभी हरी भरी वादियां हुआ करती थी...प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस स्थान पर बहुत से लोग साधना करने आया करते थे..नवरात्रों के अलावा हफ्ते के साथ दिनो में मंगलवार और शनिवार की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है...जब मंदिर में चौकी और भजन कीर्तन का आयोजन होता है...कहते है इस दिन जो भक्त यहां आकर सर झुका लेता है वह कभी निराश नहीं लौटता...खुशियों से भरी रहती है उसकी झोली...नवरात्रों में इस मंदिर में पैर रखने तक की जगह नहीं मिलती और पूरा दिन भक्तों के भीड़ से गुलजार रहता है माता का मंदिर...आज के समय में इस मंदिर के आस-पास के इलाके काफी भीड़ भाड़ और शोर गुल भरा हो गया है...लेकिन जिस समय देवी की मूर्ति प्रकट हुई थी यह स्थान बहुत ही शांत और मनोरम था...साधक यहां साधना के लिए आया करते थे...झंडेवाला मां की यह मूर्ति गुफा में सुरक्षित स्थापित है...नवरात्र के मौके पर इनका दर्शन प्राप्त करना बहुत ही फलदायी माना जाता है...यह सोच के निकला था तेरे सब कुछ मांगूगा...ये भी मांगूगा वो भी मांगूगा...लेकिन जब तेरे सामने आया सब सब कुछ भूल गया...मुझे याद रही बस तू ही तू...मां झंडेवाली तू ही तू....मां झंडेवाली का यह मंदिर अपनी भव्यता और आकार के साथ-साथ अपनी कहानी के लिए भी मशहूर है...एक भक्त को खुदाई में एक मूर्ति मिली जिसके बाद उसने एक मंदिर का निर्माण करवाया...तब से लेकर अब तक लाखों भक्त लोग उसी श्रध्दा-भाव से आते है और माता के दर्शन करते है...।
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018
सारे जग की है शान झंडेवाली का मकान...!
सारे जग की है शान झंडेवाली का मकान...।
ये तो भक्तों की है जान झंडेवाली का मकान...।।
दिल वालों का शहर दिल्ली यूं तो दिल्ली में कई धार्मिक जगह है जो देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है...उसी में से एक है मां झंडेवाला का मंदिर...अष्टकोणी आकार में मौजूद इस मंदिर में मां झंडेवाला की मूरत मन मोह लेने वाली है...साथ ही गुफा में होते है मां के मूल प्रतिमा के दर्शन...चलिये हमारे लेख के जरिये आप भी कमा लीजिये पुण्य...।
मां झेडेवाली तेरे बिन रह नहीं सकता मां मुझे तेरी आदत पड़ गई है...।
मां झंडेवाली मैं जुदाई सह नहीं सकता मुझे तेरी आदत पड़ गई है...।।
दिल्ली के झंडेवाला देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है...यह एक ऐसा पावन स्थल है जहाँ सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं...जी हाँ...यहां दूर-दूर से भक्त, माँ के पावन दर्शनों के लिए आते हैं...यहाँ भक्त माँ भगवती से अपनी मानसिक शांति, स्वास्थ्य, सुख व अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद माँगते हैं...यहाँ आने पर भक्तों का हिलता विश्वास अडिग हो जाता है...ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान की संगम स्थली देश की राजधानी दिल्ली...दिल वालों की दिल्ली का इतिहास काफी पुराना है...प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक और गुलामी से लेकर आज तक दिल्ली इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रही है...एक तरफ ऐतिहासिक इमारतों का जमघट है तो दूसरी ओर अक्षरधाम, हनुमान मंदिर, झत्तरपुर, बिड़ला मंदिर, स्कॉनटेम्पल जैसे पवित्र स्थल आस्था और विश्वास का प्रतीक बनकर भक्तों को अपने ओर आकर्षित करते है...उन्ही पावन स्थलों में एक नाम है झंडेवालान मंदिर का...दिल्ली के पहाड़गंज और झंडेवालान क्षेत्र के बीच स्थित है देवी का वो परम धाम जहां हर रोज हजारों लाखों श्रध्दालू श्रध्दा से मां के सामने अपना शीष नवाते है...और जिनके दरबार में पूरी होती है हर मुराद...झंडेवाला देवी का यह मंदिर अष्टकोढ़ी आकार में बना है...जिसका शीर्ष कमल फलकों के आकार का है...मुख्य भवन में मां झंडेवाला की प्रतिमा प्रतिष्ठित है...जो अत्यंत ही सुंदर है...और जिसकी भव्यता का वर्णन शब्दो से नहीं किया जा सकता...भवन की दक्षिणी दिशा में शीतला माता संतोषी माता वैष्णों माता गणेशजी लक्ष्मी जी और हनुमान जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है...मान्यता है मां झंडेवालान की मुख्य प्रतिमा जो खुदाई में प्राप्त हुई थी वो नीचे गुफा में मौजूद है...और ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदाई में मिला था...चूंकि माता की मूर्ति खुदाई के समय खंडित हो गई थी इस लिए उसे उसी तरह छोड़ दिया गया...ताकि प्रतिमा को और कोई क्षति ना हो...मूर्ति के नीचे का कुच भाग आज भी उसी अवस्था में है...और वर्तमान समय में मूल प्रतिमा के ऊपर ही स्थापित मां झंडेवालान के भव्य रुप का दर्शन पूजन किया जा रहा है...ठीक उसी तरह से शिवलिंग की भी क्षति ना हो इस कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया है...मां की यही वह प्रतिमा है जिसके मिलने के बाद इस मंदिर का निर्माण हुआ...और आज भी यह प्रतिमा यही स्थापित है...और इसके खंडित हाथ को चांदी के हाथ बना दिया गया...मां का मंदिर झंडेवालान के नाम से क्यूं प्रसिध्द है...और मां के इस भव्य मंदिर के बनने के पीछे की पूरी कहानी...झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वीं सदी के आस-पास से मिलता है...आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे...अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था...लेकिन किस तरह हुआ मां झंडेवालान के मंदिर का निर्माण...दिल्ली के बीचों-बीच में स्थित झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है...अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य सरकार ने भी दिल्ली के मशहूर दर्शनीय स्थलों में इसे शामिल किया है...साल भर बिना किसी भेदभाव के लाखों की संख्या में भक़्त लोग देश विदेश से दर्शन करने यहां आते हैं...नवरात्रों में यहां उमडती भक़्तजनों की भीड तो अपने आप में ही दर्शनीय बन जाती है...मंदिर में आने वाला प्रत्येक भक़्त यहां से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति लेकर ही जाता है...हर एक भक़्त को आशीर्वाद के रूप में देवी का प्रसाद मिलता है...झंडेवाला मंदिर का धार्मिक ही नही एतिहासिक महत्व भी है..झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वीं सदी के आस-पास से मिलता है...आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे...अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था... इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे...ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक मशहूर कपडा व्यपारी श्री बद्री दास भी थे...श्री बद्री दास धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के भक़्त थे...वे हर दिन इस पहाडी पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे...एक बार ध्यान में लीन श्री बद्री दास को ऐसी अनुभूति हुई कि वही निकट ही एक चश्में के पास स्थित एक गुफा में कोई प्राचीन मंदिर दबा हुआ है... दोबारा से एक दिन सपने में इसी क्षेत्र में उन्हें एक मंदिर दिखाई पडा और उन्हें लगा की कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस मंदिर को खोज निकालने के लिए प्रेरित कर रही है... इस अनोखी अनुभूति के बाद श्री बद्री दास ने उस स्थान को खोजने में ध्यान लगा दिया और एक दिन स्वप्न में दिखाई दिए झरने के पास खुदाई करते समय गहरी गुफा में एक मूर्ति दिखाई दी...यह एक देवी की मूर्ति थी पर खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया और ठीक उसके ऊपर देवी की एक नयी मूार्ति स्थापित कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवायी...इस अवसर पर मंदिर के ऊपर एक बहुत बडा ध्वज लगाया गया जो पहाडी पर स्थित होने के कारण दूर-दूर तक दिखाई देता था जिसके कारण कालान्तर में यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया...यह प्राचीन गुफा वाली माता और शिवलिंग भी भक़्तों की श्रद्धा का केंद्र है...इसी गुफा में जगाई गई ज्योतियाँ भी लगभग आठ दशकों से अखंड रूप में जल रही है...समय बीतने के साथ ही मंदिर का स्वरूप बदलने लगा और धीरे - धीरे हरी भरी अरावली की पहाडियों पर स्थान-स्थान पर भवन इमारतें बनने लगी...भारत विभाजन के समय शरणार्थियों के रूप में राजधानी दिल्ली में आने वाले लोग जहां तहां बस गए जिससे इस स्थान का रूप भी बदल गया...आजकल यह स्थान राजधानी के केंद्र में स्थित अनेक मशहूर और बहुत अधिक व्यस्त व्यापारिक केंद्रो से घिरा हुआ है जिसमें पहाडगंज, करोल बाग, सदर बाजार, झंडेवालान जैसे बाजार आते हैं...।
नवरात्र के मौके पर दिल्ली के कालका जी, कात्यायनी मंदिर, छत्तरपुर और दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान माता मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती हैं...इसका कारण यह है कि...इन मंदिरों के प्रति लोगों में बड़ी आस्था है...वही अगर हम बात झंडेवालान मंदिर की करे तो...संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान और सुनाता है कहानी देवी के चमत्कार की...भक्ति में डूबे भक्तों को इंतजार है मां का...मिल जाए मां की एक झलक, मिल जाए उनका आशीर्वाद और हो जाए उनकी कृपा...फिर कोई आस बाकी नहीं रहती...फिर कोई भी मनो-कामना अधूरी नहीं रहती...बंद आंखों से भक्त मां को करते है याद और पहुंचाते है मां तक अपनी फरियाद...लंबे इंतजार के बाद जब भक्तों को दर्शन होते है मां झंडेवालान की मनमोह लेने वाली प्रतिमा की तब भक्तों की आंखें एकटक निहारने लगती है मां को और उनका मन मां की भक्ति में लीन हो जाता है...संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान जो सुनाता है कहानी मां के चमत्कार की...आज जहां मां झंडेवालान का भव्य धाम स्थापित है वहां कभी हरी भरी वादियां हुआ करती थी...प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस स्थान पर बहुत से लोग साधना करने आया करते थे..नवरात्रों के अलावा हफ्ते के साथ दिनो में मंगलवार और शनिवार की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है...जब मंदिर में चौकी और भजन कीर्तन का आयोजन होता है...कहते है इस दिन जो भक्त यहां आकर सर झुका लेता है वह कभी निराश नहीं लौटता...खुशियों से भरी रहती है उसकी झोली...नवरात्रों में इस मंदिर में पैर रखने तक की जगह नहीं मिलती और पूरा दिन भक्तों के भीड़ से गुलजार रहता है माता का मंदिर...आज के समय में इस मंदिर के आस-पास के इलाके काफी भीड़ भाड़ और शोर गुल भरा हो गया है...लेकिन जिस समय देवी की मूर्ति प्रकट हुई थी यह स्थान बहुत ही शांत और मनोरम था...साधक यहां साधना के लिए आया करते थे...झंडेवाला मां की यह मूर्ति गुफा में सुरक्षित स्थापित है...नवरात्र के मौके पर इनका दर्शन प्राप्त करना बहुत ही फलदायी माना जाता है...यह सोच के निकला था तेरे सब कुछ मांगूगा...ये भी मांगूगा वो भी मांगूगा...लेकिन जब तेरे सामने आया सब सब कुछ भूल गया...मुझे याद रही बस तू ही तू...मां झंडेवाली तू ही तू....मां झंडेवाली का यह मंदिर अपनी भव्यता और आकार के साथ-साथ अपनी कहानी के लिए भी मशहूर है...एक भक्त को खुदाई में एक मूर्ति मिली जिसके बाद उसने एक मंदिर का निर्माण करवाया...तब से लेकर अब तक लाखों भक्त लोग उसी श्रध्दा-भाव से आते है और माता के दर्शन करते है...।
दिल वालों का शहर दिल्ली यूं तो दिल्ली में कई धार्मिक जगह है जो देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है...उसी में से एक है मां झंडेवाला का मंदिर...अष्टकोणी आकार में मौजूद इस मंदिर में मां झंडेवाला की मूरत मन मोह लेने वाली है...साथ ही गुफा में होते है मां के मूल प्रतिमा के दर्शन...चलिये हमारे लेख के जरिये आप भी कमा लीजिये पुण्य...।
मां झेडेवाली तेरे बिन रह नहीं सकता मां मुझे तेरी आदत पड़ गई है...।
मां झंडेवाली मैं जुदाई सह नहीं सकता मुझे तेरी आदत पड़ गई है...।।
दिल्ली के झंडेवाला देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है...यह एक ऐसा पावन स्थल है जहाँ सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं...जी हाँ...यहां दूर-दूर से भक्त, माँ के पावन दर्शनों के लिए आते हैं...यहाँ भक्त माँ भगवती से अपनी मानसिक शांति, स्वास्थ्य, सुख व अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद माँगते हैं...यहाँ आने पर भक्तों का हिलता विश्वास अडिग हो जाता है...ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान की संगम स्थली देश की राजधानी दिल्ली...दिल वालों की दिल्ली का इतिहास काफी पुराना है...प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक और गुलामी से लेकर आज तक दिल्ली इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रही है...एक तरफ ऐतिहासिक इमारतों का जमघट है तो दूसरी ओर अक्षरधाम, हनुमान मंदिर, झत्तरपुर, बिड़ला मंदिर, स्कॉनटेम्पल जैसे पवित्र स्थल आस्था और विश्वास का प्रतीक बनकर भक्तों को अपने ओर आकर्षित करते है...उन्ही पावन स्थलों में एक नाम है झंडेवालान मंदिर का...दिल्ली के पहाड़गंज और झंडेवालान क्षेत्र के बीच स्थित है देवी का वो परम धाम जहां हर रोज हजारों लाखों श्रध्दालू श्रध्दा से मां के सामने अपना शीष नवाते है...और जिनके दरबार में पूरी होती है हर मुराद...झंडेवाला देवी का यह मंदिर अष्टकोढ़ी आकार में बना है...जिसका शीर्ष कमल फलकों के आकार का है...मुख्य भवन में मां झंडेवाला की प्रतिमा प्रतिष्ठित है...जो अत्यंत ही सुंदर है...और जिसकी भव्यता का वर्णन शब्दो से नहीं किया जा सकता...भवन की दक्षिणी दिशा में शीतला माता संतोषी माता वैष्णों माता गणेशजी लक्ष्मी जी और हनुमान जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है...मान्यता है मां झंडेवालान की मुख्य प्रतिमा जो खुदाई में प्राप्त हुई थी वो नीचे गुफा में मौजूद है...और ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदाई में मिला था...चूंकि माता की मूर्ति खुदाई के समय खंडित हो गई थी इस लिए उसे उसी तरह छोड़ दिया गया...ताकि प्रतिमा को और कोई क्षति ना हो...मूर्ति के नीचे का कुच भाग आज भी उसी अवस्था में है...और वर्तमान समय में मूल प्रतिमा के ऊपर ही स्थापित मां झंडेवालान के भव्य रुप का दर्शन पूजन किया जा रहा है...ठीक उसी तरह से शिवलिंग की भी क्षति ना हो इस कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया है...मां की यही वह प्रतिमा है जिसके मिलने के बाद इस मंदिर का निर्माण हुआ...और आज भी यह प्रतिमा यही स्थापित है...और इसके खंडित हाथ को चांदी के हाथ बना दिया गया...मां का मंदिर झंडेवालान के नाम से क्यूं प्रसिध्द है...और मां के इस भव्य मंदिर के बनने के पीछे की पूरी कहानी...झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वीं सदी के आस-पास से मिलता है...आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे...अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था...लेकिन किस तरह हुआ मां झंडेवालान के मंदिर का निर्माण...दिल्ली के बीचों-बीच में स्थित झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है...अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य सरकार ने भी दिल्ली के मशहूर दर्शनीय स्थलों में इसे शामिल किया है...साल भर बिना किसी भेदभाव के लाखों की संख्या में भक़्त लोग देश विदेश से दर्शन करने यहां आते हैं...नवरात्रों में यहां उमडती भक़्तजनों की भीड तो अपने आप में ही दर्शनीय बन जाती है...मंदिर में आने वाला प्रत्येक भक़्त यहां से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति लेकर ही जाता है...हर एक भक़्त को आशीर्वाद के रूप में देवी का प्रसाद मिलता है...झंडेवाला मंदिर का धार्मिक ही नही एतिहासिक महत्व भी है..झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वीं सदी के आस-पास से मिलता है...आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे...अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था... इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे...ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक मशहूर कपडा व्यपारी श्री बद्री दास भी थे...श्री बद्री दास धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के भक़्त थे...वे हर दिन इस पहाडी पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे...एक बार ध्यान में लीन श्री बद्री दास को ऐसी अनुभूति हुई कि वही निकट ही एक चश्में के पास स्थित एक गुफा में कोई प्राचीन मंदिर दबा हुआ है... दोबारा से एक दिन सपने में इसी क्षेत्र में उन्हें एक मंदिर दिखाई पडा और उन्हें लगा की कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस मंदिर को खोज निकालने के लिए प्रेरित कर रही है... इस अनोखी अनुभूति के बाद श्री बद्री दास ने उस स्थान को खोजने में ध्यान लगा दिया और एक दिन स्वप्न में दिखाई दिए झरने के पास खुदाई करते समय गहरी गुफा में एक मूर्ति दिखाई दी...यह एक देवी की मूर्ति थी पर खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया और ठीक उसके ऊपर देवी की एक नयी मूार्ति स्थापित कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवायी...इस अवसर पर मंदिर के ऊपर एक बहुत बडा ध्वज लगाया गया जो पहाडी पर स्थित होने के कारण दूर-दूर तक दिखाई देता था जिसके कारण कालान्तर में यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया...यह प्राचीन गुफा वाली माता और शिवलिंग भी भक़्तों की श्रद्धा का केंद्र है...इसी गुफा में जगाई गई ज्योतियाँ भी लगभग आठ दशकों से अखंड रूप में जल रही है...समय बीतने के साथ ही मंदिर का स्वरूप बदलने लगा और धीरे - धीरे हरी भरी अरावली की पहाडियों पर स्थान-स्थान पर भवन इमारतें बनने लगी...भारत विभाजन के समय शरणार्थियों के रूप में राजधानी दिल्ली में आने वाले लोग जहां तहां बस गए जिससे इस स्थान का रूप भी बदल गया...आजकल यह स्थान राजधानी के केंद्र में स्थित अनेक मशहूर और बहुत अधिक व्यस्त व्यापारिक केंद्रो से घिरा हुआ है जिसमें पहाडगंज, करोल बाग, सदर बाजार, झंडेवालान जैसे बाजार आते हैं...।
नवरात्र के मौके पर दिल्ली के कालका जी, कात्यायनी मंदिर, छत्तरपुर और दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान माता मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती हैं...इसका कारण यह है कि...इन मंदिरों के प्रति लोगों में बड़ी आस्था है...वही अगर हम बात झंडेवालान मंदिर की करे तो...संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान और सुनाता है कहानी देवी के चमत्कार की...भक्ति में डूबे भक्तों को इंतजार है मां का...मिल जाए मां की एक झलक, मिल जाए उनका आशीर्वाद और हो जाए उनकी कृपा...फिर कोई आस बाकी नहीं रहती...फिर कोई भी मनो-कामना अधूरी नहीं रहती...बंद आंखों से भक्त मां को करते है याद और पहुंचाते है मां तक अपनी फरियाद...लंबे इंतजार के बाद जब भक्तों को दर्शन होते है मां झंडेवालान की मनमोह लेने वाली प्रतिमा की तब भक्तों की आंखें एकटक निहारने लगती है मां को और उनका मन मां की भक्ति में लीन हो जाता है...संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान जो सुनाता है कहानी मां के चमत्कार की...आज जहां मां झंडेवालान का भव्य धाम स्थापित है वहां कभी हरी भरी वादियां हुआ करती थी...प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस स्थान पर बहुत से लोग साधना करने आया करते थे..नवरात्रों के अलावा हफ्ते के साथ दिनो में मंगलवार और शनिवार की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है...जब मंदिर में चौकी और भजन कीर्तन का आयोजन होता है...कहते है इस दिन जो भक्त यहां आकर सर झुका लेता है वह कभी निराश नहीं लौटता...खुशियों से भरी रहती है उसकी झोली...नवरात्रों में इस मंदिर में पैर रखने तक की जगह नहीं मिलती और पूरा दिन भक्तों के भीड़ से गुलजार रहता है माता का मंदिर...आज के समय में इस मंदिर के आस-पास के इलाके काफी भीड़ भाड़ और शोर गुल भरा हो गया है...लेकिन जिस समय देवी की मूर्ति प्रकट हुई थी यह स्थान बहुत ही शांत और मनोरम था...साधक यहां साधना के लिए आया करते थे...झंडेवाला मां की यह मूर्ति गुफा में सुरक्षित स्थापित है...नवरात्र के मौके पर इनका दर्शन प्राप्त करना बहुत ही फलदायी माना जाता है...यह सोच के निकला था तेरे सब कुछ मांगूगा...ये भी मांगूगा वो भी मांगूगा...लेकिन जब तेरे सामने आया सब सब कुछ भूल गया...मुझे याद रही बस तू ही तू...मां झंडेवाली तू ही तू....मां झंडेवाली का यह मंदिर अपनी भव्यता और आकार के साथ-साथ अपनी कहानी के लिए भी मशहूर है...एक भक्त को खुदाई में एक मूर्ति मिली जिसके बाद उसने एक मंदिर का निर्माण करवाया...तब से लेकर अब तक लाखों भक्त लोग उसी श्रध्दा-भाव से आते है और माता के दर्शन करते है...।
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