बरखांजलि

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सोमवार, 8 मार्च 2010

अलवर-अतीत का एक सुनहरा पन्ना

अलवर भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है। यह नगर राजस्थान के मेवात अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मे शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १७० कि.मी. की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है।

पूरे अलवर को एक दिन में देखा जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं, कि अलवर में देखने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। अलवर ऐतिहासिक इमारतों से भरा पडा है। यह दीगर बात है कि इन इमारतों के उत्थान के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है शहर की सिटी पैलेस इमारत। इस पूरी इमारत पर सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, कहने मात्र के लिए इसके एक तल पर संग्राहलय बना दिया गया है, विजय मंदिर पैलेस पर अधिकार को लेकर कानूनी लडाई चल रही है। इसी झगडे के कारण यह बंद पडा है, बाला किला पुलिस के अधिकार में है। फतहगंज के मकबरे की स्थिति और भी खराब है, सब कुछ गार्डो के हाथों में है, वे चाहें तो आपको घूमने दें, या मना कर दें। घूमने के लिहाज से अलवर की स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं, पर अलवर का सौन्दर्य पर्यटकों को बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करता है।

फतहगंज का मकबरा पाँच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमाँयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। यह प्राय ९ बजे से पहले भी खुल जाता है। इसे देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी जा सकते हैं। मोती डुंगरी का निर्माण १८८२ में हुआ था। यह १९२८ तक अलवर के शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुड़वाकर यहां इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था, लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था, वह डूब गया। जहाज डूबने पर महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड़ दिया। इमारत न बनने से यह फायदा हुआ कि पर्यटक इस पहाड़ी पर बेरोक-टोक चढ़ सकते हैं और शहर के सुन्दर दुश्य का आनंद ले सकते हैं।

कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। समर हाऊस में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। शाम के समय चर्च रोड पर बाजार लगता हैं। यहां काफी भीड-भाड रहती है। चर्च रोड घूमने के लिए सुबह का समय उपयुक्त है क्योंकि उस समय आप यहां की हवेलियों को अच्छी तरह देख सकते हैं। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह शहर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और एक मंदिर भी है। होप सर्कल से सात गलियां विभिन्न स्थलों तक जाती है। चर्च रोड से पांचवी गली घंटाघर तक जाती है, वहीं पर कलाकंद बाजार भी है। यहीं से चौथी गली त्रिपोलिया गेटवे और सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। शहर से त्रिपोलिया की छटा देखने लायक होती है। इसके कोनों में अनेक छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। गेटवे से सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाज बाजार पडते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है। इन बाजारों में घूमते हुए आप यहां की अनेक खूबसूरत हवेलियों को भी देख सकते हैं।

सिटी पैलेस परिसर बहुत ही खूबसूरत है और इसके साथ-साथ बालकॉनी की योजना है। गेट के पीछे एक बडा मैदान है। इसी मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। सुबह के समय जब सूर्य की पहली किरण सिटी पैलेस परिसर के मुख्य द्वार पडती है तो इसकी छटा देखने लायक होती है। हाल के दिनों में इसकी स्थिति दयनीय है। पूरी इमारत पर जिलाधीश और पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट आदि के सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है। इस महल का निर्माण १७९३ में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर संग्रहालय भी है। यह तीन हॉल्स में विभक्त है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखे हैं, हॉल का मुख्य आकर्षण महाराज जयसिंह की साईकिल है। यहां हर वस्तु बडे सुन्दर तरीके से सजाई गई है। दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगजेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री प्रदर्शित है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। संग्रहालय घूमने का समय सुबह १० बजे से शाम ५ बजे तक है, शुक्रवार को अवकाश रहता है।

सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक बहुत ही खूबसूरत जलाशय है, जिसे सागर कहते हैं। इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के पानी तक सीढियाँ बनी हैं। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। यहां कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा है। जलाशय के साथ मंदिरों की एक श्रृंखला भी है। दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बना संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।

सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके ऊपर अरावली की पहाड़ियाँ हैं, जिन पर बाला किला बना है। बाला किले की दीवार पूरी पहाडी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर शहर में यह सबसे पुरानी इमारत है, जो लगभग ९२८ ई० में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देख नहीं सकते, क्योंकि इसमे पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अलवर अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक अच्छा सड़क मार्ग है। दोनों तरफ छायादार पेड़ लगे हैं। रास्ते में पत्थरों की दीवारें दिखाई देती हैं, जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह ६ बजे से शाम ७ बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता का मंदिर इसी के रास्ते मे है, और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को ९ बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए तब पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं।

सिलीसेड झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। इसका निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने १८४५ में करवाया था। इस झील से रूपारल नदी की सहायक नदी निकलती है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढकर १०.५ वर्ग किमी हो जाता है। झील के चारों ओर हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

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